उत्तरप्रदेश

पूर्वांचल के गांधी,प्रो शिब्बन लाल सक्सेना जी की पुण्य तिथि

भारत रक्षक न्यूज

ब्यूरो चीफ बिपिन सिंह महराजगंज

महराजगंज अत्याचार और अनाचार के विरुद्ध आम जनता के पक्ष में पूर्ण समर्पण के साथ संघर्ष करने वाले महामानव कभी-कभी ही जन्म लेते हैं।
पूर्वांचल के गांधी के नाम से विख्यात संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य रहे प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना का जन्म 13 जुलाई 1906 को बरेली में एक मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ था l इनके पिता का नाम छोटेलाल सक्सेना जो पोस्ट मास्टर थे और माता का नाम बिट्टी रानी(शकुंतला देवी) था। इनके बाबा का नाम नारायण दास था। इनके एकमात्र भाई का नाम डॉ. होरी लाल सक्सेना था। इनकी छोटी बहन का नाम उषा प्रियम्बदा था, जो हिन्दी को प्रतिष्ठित कहानीकार है, और वर्तमान में अमेरिका में रह रही है। मात्र सात वर्ष की आयु में ही इनकी मां का निधन हो गया और कुछ वर्ष बाद इनके पिता का निधन हो गया। अल्प आयु में ही प्रो सक्सेना के ऊपर परिवार को समस्त जिम्मेदारी आ गईं l इस काम में इन्हें इनके मामा दामोदर प्रसाद का सहारा मिला। कानपुर में इण्टर तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1924 में स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से ( स्वर्ण पदक) प्राप्त कर पूरी की। दर्शन शास्त्र में इन्होंने प्रथम श्रेणी में परास्नातक किया। आगरा विश्वविद्यालय से इन्होंने गणित विषय में दोबारा परास्नातक किया। दो विषयों से एम. ए. करने के पश्चात् 1928 में गोरखपुर के प्रतिष्ठित सेण्ट एण्ड्रयूज कॉलेज में गणित और दर्शनशास्त्र के व्याख्याता पद पर नियुक्त हुएl प्रो. सक्सेना का अटूट विश्वास था कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। प्रो. सक्सेना महर्षि दयानन्द सरस्वती, महात्मा गाँधी, गणेश शंकर विद्यार्थी, पं जवाहर लाल नेहरु और सरदार बल्लभ भाई पटेल से विशेष रूप से प्रभावित रहे।


गणेशशंकर विद्यार्थी के साथ प्रो. सक्सेना को बचपन से ही काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। ‘जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड’ के विरोध में कानपुर में 15 अप्रैल 1909 को विद्यार्थी जी के नेतृत्व में आम-हड़ताल का आह्वान किया गया तो अन्य के साथ सक्सेना जी को भी गिरफ्तार किया गया। इस प्रकार इनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत हुई। 1920 में जब असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ तो कानपुर में मजदूर सभा के साथ मिलकर उन्होंने आन्दोलन में भाग लिया।प्रो सक्सेना ने कभी सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया। तमाम झन्झावातों को झेलते हुए उन्होंने विशेषतः पूर्वाचल की सेवा करने का व्रत लिया। 1931 में सेण्टएण्ड्यूज कालेज गोरखपुर से त्यागपत्र देने के पश्चात महराजगंज की ओर रुख किया।यहाँ आने के बाद वे जन-जागरूकता के कार्य में लग गएl अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे शोषण के विरूद्ध संघर्ष का ऐलान किया। महराजगंज जनपद के विशुनपुर गबडुआ गाँव में 26 अगस्त 1942 को सक्सेना जी एक बैठक करने वाले थे इस मिटिंग की सूचना ब्रिटिश हुकूमत के गोरखपुर के कलेक्टर वीडी मास को मिली। 27 अगस्त 1942 को यहाँ से प्रो. सक्सेना का गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी व मजदूरों के मसीहा बनकर किसानों के सहयोगी बनकर जनजागरण के दूत बनकर, विकास के भगीरथ बनकर अतुलनीय राजनेता बनकर, अप्रतिम समाज-सेवक चिन्तक बनकर इस क्षेत्र में अपनी एक पहचान बनाई।

प्रो.सक्सेना एक प्रकाण्ड विद्वान एवं शिक्षाविद थे, एक समर्पित शिक्षाशास्त्री थे। स्वतन्त्रता संग्राम में गांधी जी से प्रभावित होकर नौकरी त्याग कर आन्दोलन में अपने-आपको समर्पित कर दिया। उन्होंने बाद में महराजगंज तहसील को अपना कार्यक्षेत्र बना दिया। यहाँ को निर्धनता और अशिक्षा से वे दुःखी हुए। उन्होंने महसूस किया कि इस क्षेत्र के जनता की सबसे बड़ी आवश्यकता शिक्षा की है। उस दृष्टि से 18 फरवरी 1940 को पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक इण्टर कॉलेज का शिलान्यास कराया। उच्च शिक्षा की दृष्टि से 13 मार्च 1965 को तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से जवाहर लाल नेहरू पीजी कालेज का शिलान्यास कराया तथा जुलाई 1966 में कालेज में शिक्षण कार्य प्रारम्भ हो गया। लोकसभा के ही दूसरे क्षेत्र फरेन्दा में लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कालेज का शिलान्यास 24 मार्च 1972 को स्वयं सक्सेना जी ने किया। लोकसभा के दूसरे खण्ड सिसवा बाजार में 03 फरवरी 1976 को तत्कालीन राज्यपाल डॉ. एम. चेन्ना रेड्डी से छोटेलाल दामोदर प्रसाद डिग्री कालेज, बोसोखोर का शिलान्यास कराया।
संविधान-निर्मात्री- सभा के सदस्य रूप में भी प्रो सक्सेना जी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। संविधान के लगभग सभी अनुच्छेदों पर उन्होंने अपना संशोधन प्रस्ताव दिया। 1946 में संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य बनाए जाने के बाद इस सभा में प्रो सक्सेना जी ने अप्रतिम सहयोग दिया। प्रो. सक्सेना जॉन लॉक के प्राकृतिक अधिकारों के अवधारणा से बहुत प्रभावित थे। वे डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रशंसा के पात्र रहे। प्रो. सक्सेना की स्मरण शक्ति अत्यन्त विलक्षण थी। वह जब भी कोई डिक्टेशन देते थे तो वह कई पन्ने का और क्लिष्ट अंग्रेजी का होता था। प्रो सक्सेना विद्वान होने के साथ स्वयं शिक्षक भी रहे। वे अनुभव करते थे, तथा कहा करते थे कि विद्यामन्दिर मे अच्छा पुस्तकालय और वाचनालय होता है। इस निमित्त विषयवार पुस्तकों की सूची लेकर पुस्तक-मेला (दिल्ली, मेरठ और आगरा) जाकर स्वयं उपयोगी पुस्तकें ले के आते और पुस्तकालय में रख देते थेlप्रो. सक्सेना हमेशा चुनाव लड़ते रहते थे और विजयी होकर विकास की गति को आगे बढ़ाने में विश्वास करते थे l उनके मन में महराजगंज जनपद को शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ करने का जज्बा था l
प्रोफेसर सक्सेना के जीवन व्यक्तित्व और कारनामों का जिक्र अधूरा रह जाएगा यदि शिक्षा और उनके उन्नयन की दिशा में किए गए कुछ कारनामों का उल्लेख न किया जाए, आधुनिक भारत के निर्माता एवं प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मतभेद थे परंतु दूरी नहीं थी वह पंडित जी से बहुत प्रभावित थे और उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे इसी के परिणाम स्वरुप उन्होंने 6 सितंबर 1966 को पंडित नेहरू की यादगार के तौर पर स्नातक स्तर पर 6 विषयों की मान्यता लेकर जवाहरलाल नेहरू स्मारक डिग्री कॉलेज की स्थापना महाराजगंज मुख्यालय पर किया जो आज पूरे जनपद का एक प्रतिष्ठित स्नातकोत्तर कॉलेज हैl
जय जवान जय किसान का उदघोष करने वाले सादा जीवन उच्च विचार रखने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की यादगार के तौर पर अपनी कर्मस्थली के दूसरे प्रभाव फरेंदा में प्रोफेसर सक्सेना ने 1972 में लाल बहादुर शास्त्री स्मारक डिग्री कॉलेज की स्थापना की जिसमें आज स्नातक और परास्नातक स्तर की पढ़ाई हो रही है l सिसवा निचलौल के साथी नेपाल के तराई क्षेत्र के छात्रों को अध्ययन करने का अवसर प्रदान करने के लिए विश्व कोर में अपने स्वर्गीय पिता छोटेलाल व संरक्षक मामा स्वर्गीय दामोदर प्रसाद की याद में एक डिग्री कॉलेज की स्थापना प्रोफेसर सक्सेना ने की, जिसके नाम में अभी उनका नाम जुड़ा हुआ है और जिसमें स्नातक व स्नातकोत्तर की कक्षाएं चलाने की अनुमति शासन से मिल चुकी है,और पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है l
प्रो सक्सेना महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रबल समर्थक थे लेकिन लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण वह इस दिशा में कुछ कर नहीं सके l उन्हें अनेक प्रकार की गंभीर बीमारियों ने जकड़ लिया था।कई बार गंभीर रूप से बीमार पड़ने के बाद अप्रैल 1985 में अंतिम बार काफी बीमार हो गए और मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में भर्ती कराए गए 16 अप्रैल 1985 को स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्होंने कहा था मैं अपने कर्मस्थली महाराजगंज में मरना और वही की मिट्टी में मिल जाना चाहता हूं l गोरखपुर मेडिकल कॉलेज से उन्हें अच्छे उपचार हेतु बलरामपुर अस्पताल भेज दिया गया जहां 20 अक्टूबर 1985 को उनका दुखद निधन हो गया, उनकी अंतिम संस्कार की क्रिया महाराजगंज में ही उनकी कर्मस्थली और कीर्ति स्थल जवाहरलाल नेहरू पीजी कॉलेज के कीड़ांगन में की गई l
अन्त में यह कहना समीचीन है कि प्रो. सक्सेना एक उच्चकोटि के शिक्षाविद विचारक, चिन्तक निर्भीक स्वाभिमानी, तपस्वी, त्यागी और समाजवादी व्यवस्थापक थे,आज मात्र उनकी ही देन है कि तराई के इस पिछड़े क्षेत्र में तीन-तीन महाविद्यालय, इण्टर कालेज और बहुत सारे शिक्षण संस्थायें है जिससे हजारों परिवारों के भरण-पोषण के साथ-साथ शिक्षा का बहुमुखी प्रचार-प्रसार हो रहा है। इन शिक्षण संस्थाओं में लगे शिक्षकों,कर्मचारियों और शिक्षा पा रहे छात्रों और उनके अभिभावकों को ओर से प्रो० सक्सेना को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ श्रद्धान्जलि है।
इस महामानव के महाप्रयाण के बाद इनके उत्तराधिकारी के रूप में इनके द्वारा निर्मित शिक्षण संस्थाओं में प्रबन्धकीय-व्यवस्थापन देख रहे डॉ. बलराम भट्ट ने भी प्रो. सक्सेना द्वारा दिये गये जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है। प्रो. सक्सेना जी जहाँ छोड़ गये थे वहीं से उनके शिक्षण संस्थाओं में उनके सपनों को साकार करते हुए डॉ. भट्ट ने भी आगे बढ़ाया है। जवाहर लाल नेहरू डिग्री कालेज को डॉ. बलराम भट्ट ने चार विषयों में परास्नातक (राजनीति शास्त्र, हिन्दी, भूगोल व प्राचीन इतिहास) की शिक्षा सुलभ करायी है। शारीरिक शिक्षा एवं खेल के महत्त्व को देखते हुए बी.पी.एड्.और एम एड मा संस्कृत समाजशास्त्र पाठ्यक्रम के साथ ही स्नातक स्तर के विज्ञान की कक्षाएं भी प्रारंभ हो गई है l लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कालेज, आनन्दनगर में बी.ए. के अतिरिक्त बी.एस-सी. पाठ्यक्रम को डॉ भट्ट ने संचालित कराया है। विज्ञान और कला में भी परास्नातक (क्रमशः प्राणि विज्ञान रसायन शास्त्र गणित और कला संकाय में पी जी स्तर पर समाजशास्त्र की कक्षाएँ चल रही हैं। इतना ही नहीं इस महाविद्यालय में तकनीकी शिक्षा के बी. एड्. का पाठ्यक्रम भी चल रहा है। प्रो. सक्सेना के प्रथम शिक्षण संस्थान गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक इण्टर कालेज, महराजगंज में भी तमाम निर्माण के साथ-साथ मुख्यालय पर अपनी माँ के नाम से सोनपति देवी महिला पी.जी. कालेज की स्थापना 2003 में करके डॉ. भट्ट ने अपनी मां को श्रद्धाञ्जलि अर्पित की तथा उनके सपनों को साकार करने में एक कदम आगे बढ़ गये हैं। डॉ. भट्ट ने भी इस पिछड़े और तराई के जनपद को प्राथमिक-शिक्षा की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए सतत् प्रयत्नशील हैं। यही नहीं आज के इस आधुनिक युग में इन सभी शिक्षण-संस्थानों में कम्प्यूटर की शिक्षा भी दी जा रही है तथा जनपद में ये संस्थायें शिक्षा के क्षेत्र में अपनी भूमिका महत्वपूर्ण बनाये हुए हैं। प्रो. सक्सेना की दृष्टि- दूरदृष्टि थी और उनका इरादा फौलादी और इन्कलाबी था। इसलिए हम सब महराजगंज जनपद के नागरिक प्रो. सक्सेना को उनकी पुण्यतिथि पर नमन करते हैंl

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